आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाएश्रीराम शर्मा आचार्य
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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक
लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
अनेकों गुत्थियों और समस्याओं के साथ मनुष्य का जीवन उलझा हुआ है। उन्हें वह सुलझाना चाहता है और शांतिपूर्वक रहना चाहता है, पर वे सुलझ नहीं पातीं। कारण यह है कि समस्याओं का वास्तविक स्वरूप एवं सुलझाने का सही तरीका मालूम न होने से इस प्रकार के प्रयत्न किए जाते हैं, जो जड़ की उपेक्षा करके पत्तों को सींचने के समान हास्यास्पद सिद्ध होते हैं।
परमात्मा सबका पिता है। उसे अपने सभी पुत्र समान रूप से प्यारे हैं। वह सबका हित और कल्याण चाहता है और सभी के लिए समान स्नेह से सुख-साधन एवं सुविधाएँ प्रदान करता है। किंतु देखा जाता है कि कितने ही व्यक्ति दुःखी और कितने ही सुखी हैं। इस भिन्नता का कारण कोई बाहरी व्यक्ति, परिस्थिति, ग्रह, नक्षत्र या देव-दानव नहीं वरन् वह स्वयं ही है। प्रत्येक व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। प्रारब्ध और आकस्मिक हानि-लाभ जो कि दैवी अनुग्रह या कोप समझे जाते हैं, वस्तुतः हमारी अपनी निज की कृति ही हैं। भूतकाल में हमने जो कुछ शुभ-अशुभ कर्म किये हैं, वे ही आज प्रारब्ध बनकर सामने खड़े होते हैं। पूर्व कृत शुभ कर्मों का जब सुखद परिपाक सामने आता है, तब वह दैवी कृपा जैसा लगता है और जब अशुभ कर्मों का दुःखदायी परिणाम सामने आता है तो वह ईश्वरीय कोप या भाग्यहीनता जैसा प्रतीत होता है। वस्तुतः अपनी प्रत्येक भली-बुरी परिस्थिति का उत्तरदायित्व स्वयं अपने ऊपर ही होता है। सुख और दुःख देने की शक्ति बाहर की अन्य किसी सत्ता में नहीं, वह तो व्यक्ति स्वयं ही है, जो अपने लिए शुभ-अशुभ परिस्थितियों का निर्माण किया करता है। मकड़ी अपना जाला स्वयं ही बुनती है और उसमें स्वयं ही उलझी रहती है। मनुष्य भी अपनी परिस्थितियों का जाला स्वयं बुनता है और वह स्वयं ही उसमें फँसता रहता है।
इस तथ्य को हम जितना ही अधिक हृदयंगम करते हैं, उतना ही यह निश्चय होता जाता है कि अध्यात्म ही इस संसार का सबसे बड़ा, सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वज्ञान है। यही सबसे बड़ी शिक्षा और यही सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता है। जिस आधार पर हमारे सुख-दुःख की, उत्थान-पतन की, संतोष-संताप की धुरी घूमती है, उस पर ही सबसे अधिक ध्यान देने को आवश्यकता है। जड़ को सींचने से जब पत्ते हरे होवें तो हर कुम्हलाये हुए पत्ते को अलग-अलग सींचने या उन पर हरा रंग पोतने का श्रम करने से क्या लाभ? अनेकों प्रकार की गुत्थियाँ और परेशानियाँ हमारे सामने रहती हैं। यदि उनका उलझना और सुलझना हमारी आंतरिक स्थिति पर ही निर्भर है तो बाह्य उपचारों की अपेक्षा अपने आंतरिक स्तर का सुधार करने का ही प्रयत्न क्यों न किया जाए?
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- भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
- क्या यही हमारी राय है?
- भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
- भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
- अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
- अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
- अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
- आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
- अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
- अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
- हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
- आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
- लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
- अध्यात्म ही है सब कुछ
- आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
- लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
- अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
- आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
- आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
- आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
- आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
- आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
- अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
- आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
- अपने अतीत को भूलिए नहीं
- महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न